कइसन जमाना : छत्तीसगढ़ी कविता

सियान हर बोहे हे घर के बोझा,
जवान हर किंजरंथे ओधा-ओधा।
सुरताय के दिन म परंथे कमाना,
दुनिया म आगे हे कइसन जमाना।।

ठलहा रही फेर खेत आय नही,
कमाय के लइक ह कमाय नही,
का करे सियान ह घर हे चलाना।
दुनिया म आगे हे कइसन जमाना।।

पढ़हंता ह नांगर ल धरय नही,
घर दुवार बर चेत ल करय नही,
सोजझे म काहथे नौकरी देवाना।
दुनिया म आगे हे कइसन जमाना।।

सेखियावथे गली म बन ठन के,
चिक्कन चाकन खावथे हकन के,
उपराहा म सौ रुपिया थइलीम धराना।
दुनिया म आगे हे कइसन जमाना।।

पुचपुचावत हे बर बिहाव बर,
छांटथे गजब गोरी नारी उज्जर,
बरात बर कहिथे मोटर लगाना।
दुनिया म आगे हे कइसन जमाना।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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