बिरहा के आगी : छत्तीसगढ़ी गीत

बिरहा के आगी मोर जीया जरोवथे।
रही-रही के सुरता तोर करेजा करोवथे।।

आसा के तरिया म मया डोंगा तउरथे,
बुड़ोबे के उबारबे मन ड़ोंगहार पुछंथे।
रही-रही के लाहरा मोर धीरज धरोवथे ...
बिरहा के आगी मोर जीया जरोवथे।
रही-रही के सुरता तोर करेजा करोवथे।।

बिते बिसरे तोर संग के बेरा नइ भुलावथे,
सुरता के पेड़वा हर सांस डोरी झुलावथे।
रही-रही के पावन मोर जिवरा डरोवथे ...
बिरहा के आगी मोर जीया जरोवथे।
रही-रही के सुरता तोर करेजा करोवथे।।

नयन के लिगरी म, दुनो नजन लड़थे,
सोन पुतरी परी अब, आसु बन के ढरथे।                                   
रही-रही के आखी मोर, नरवा ढरोवथे ...
बिरहा के आगी मोर जीया जरोवथे।
रही-रही के सुरता तोर करेजा करोवथे।।
-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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