नवा बिहान : छत्तीसगढ़ी कविता

सुनता के बिरवा ले जग म सुराज आही,
सुम्मत के दिया ले जग ह अंजोर पाही।
अबतो गांव-गांव म नवा बिहान आही।।

गांव-गली म घलो अक्छर गियान के जोत बरे,
एक हाथ म बइला नांगर दूसर म किताब धरे,
अड़हा अनपढ़ मनखे अब गीता रमायन गाही।
अबतो गांव-गांव म नवा बिहान आही।।


अंधविस्वास अउ भरम के जाल मिटगे,
लड़का लड़की दूनो कुल के दीया बनगे,
समाज ले अब जात-पात के भेद भगाही।
अबतो गांव-गांव म नवा बिहान आही।।

खेती के सेती जागे हे सबके भाग आज,
नित-नियाव बर आगे हे पंचइती राज
अनधन के छांव ले अब गांव सुफल पाही।
अबतो गांव-गांव म नवा बिहान आही।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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