जिनगी के भेद : छत्तीसगढ़ी अतुकांत रचना

जागेवं बिहनीया लाली सूरुज के चड़ती           
अंगना म उड़ आइस दु चिरइया उड़ती
पिरीत के चोच लड़ई ले चिनहेव नर नारी
कभु डारा म उड़ बईठे कभु उड़य छानी
बिलमगेवं बुता म मैं देख के अनदेख।

बेरा बुड़ती लहूटेव अपन बसुंदरा
नजर म झुलगे काड़ी खुटी के खोंधरा
काड़ी-काड़ी जोर के सिरजाये हेबे पैरा
चहक-चहक के काहय सुघर हे डेरा
जान डरेव ये पंछी बनाहे अपन बसेरा
हरहिंछा होगवं मैं  दिन अउ रतिहा अब।


दूसरइया बिहनीया फेर देखेवं वहू देखय
नर उठे त नारी, नारी उठे त नर राखय
मन मन म गुनेव का ओढ़र ये
खोंधरा ल सुन्ना काबर नई छोड़ये
मन नइ मानिस मैं झांक डरेवं
दाई ददा के पिरा ल मैं भांप डरेवं देख।

पारी-पारी अंडा ले पिला सेवत राहय
पल-पल महू खोधरा ल  पासत रेहवं
गुंजगें अंगना नवा चाहक ले दु ले होगे चार
पांखी सवारे चारा चरावे करके मया दुलार
एक दिन उड़ागे चारो सुन्ना छोड़के अंगना दुवार
मया के माहल भोसकगे, मुठा ले झरगे रेत।
ये खोधरा ले जानेवं मैं  जिनगी के भेद।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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