राउत दोहा : छत्तीसगढ़ी गीत

बन म गरजे बलखर बघवा,             
कोठा म गरजे गोररईया।
खैरखा म गरजे राउत गहिरा,
कारी कुकरी देवे धुरपईया।।


दिन देवारी हे मोर लछमी मईया,
मैं खैरखा म लउठी भांजवं।
लान तेंदु साहर के लउड़ी भईया,
मैं पुरखा के मातर जागवं।।


मेड़ पार म तेलिन रेंगें,
भरका म रेंगें रउतइन।
गाड़ी रावन बरदीहा रेंगें,
हांकत ठाकुर के गइयन।।


दिन देवारी हे मोर देव गोबरधन,
मैं साहड़ा देव के गुन गाववं ।
लान मंजुर पांख के सोहईकरधन,
मैं पुरखा के मातर जागवं।।


रंग मताए दाउ दरागा,
छापर मताए गइयन।
अपन देवारी राउत मातेगा,
काछन निकलत दईहान।।
दिन देवारी हे मोर अखरा के बैताल,
मैं मोहबा के महमाई सुमरवं।
लान चवंर मड़ई के खड़ग ढाल
मैं पुरखा के मातर जागवं।।


चार महिना के चरवाही म,
दुध दही के चंडी जाथे।
दुहना छुटे दसराहा देवारी म,
घर घर माखन मिसरी खाथे।।


दिन देवारी हे मोर गउरा गउरी,
मैं  कुलदाई के चरन पखारवं।
लान कुरुद हाट के कमरा खुमरी,
मैं  पुरखा के मांतर जागवं।।


गाय गछिया ले कोठार भरय,
कोठी छलकय अंनधन ले।
किसन कन्हइया किरपा करय,
फलय फुलय अंगना असिद ले।।


दिन देवारी हे मोर दाउ सउंधीयागा,
मैं यदुवंसी के कुल दिया हरवं।
लान पाटन बजार के कोस्टउहा पागा,
मैं  पुरखा के मांतर जागवं।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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