छत्तीसगढ़ी कविता : दिन देवारी हे

लिप पोते सुघ्घर भुवना, चउक पुरावत अंगना।
दिन देवारी हे कातिक महिना आरो देवथे सुवना।।

अलिन गलिन ले सखिया बटोरत,
तरिहर नाना तिरिया गावय।
घानी मुंदी झुमर पड़की नाचत,
अंजरी भर अन्न असिद पावय।
कुंभरा गड़े पड़की कड़रा डारे राखी
गोड़िन बोहे मुड़ म सखीया बारे दियना। दिन देवारी हे ...


गौरा चौरा म मोहरी बाजे।
चुंदी छरीयाए बइगीन झुपे,
सोटा मारत बइगा नाचे।
गउरा दुल्हा बउ गउरी दुल्हिन
सरी जग देखय मंगल लगना। दिन देवारी हे ...

गरवा बगराए खैरखा म
गहीरा पारय दोहा।
लउठी चलत अखड़ा डाढ़ म
सहाय करे साहड़ा देवहा।
राउत नाचे अहिर रउतइन लिपे ओरी
सोहई बांधे गर म गउ के होवे पुजन।  दिन देवारी हे ....

-  जयंत साहू
डूण्डा -2 रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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