मनखे अबके : छत्तीसगढ़ी कविता

पतियाय के लइक नइये कोनो मनखे अबके।
बघवा बनके बेटा मन दाई ददा ल हबके।।

नानपन म दुख पिरा ले पोसिस तेकर सुध नइये,
डेना पुदगा तोर जामगे त सियान के बुध नइये,
पढ़हंता मन तो पुरखा के चिनहा बरो दिस कबके।
पतियाय के लइक नइये कोनो मनखे अबके।


एक पतरी म बाट बिराज के खवईया,
अब होगे एक दुसर के मुह ले कावरा नंगइया,
भाई-भाई के झगरा म गोसइन घलो दांत चबके।
पतियाय के लइक नइये कोनो मनखे अबके।


अनजान ले जादा चिनहे जाने ह छलथे,
सिधवा के नकाब भीतर लबरा ह पलथे,
हितवा मितवा कस मीठ बोली ये तोर मतलबके।
पतियाय के लइक नइये कोनो मनखे अबके।


जिनगी अरथ बनगे धन दौलत कमाना,
सुख के खोजइ म कतका बदलबे ठिकाना,
गुमान म उड़इया एक दिन सुवा उड़ही सबके।।
पतियाय के लइक नइये कोनो मनखे अबके।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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