तिरंगा : छत्तीसगढ़ी कविता

तिरंगा ओड़े रेगय धरती, अहिंसा के पैडगरी म।
उच निच अउ जाति धरम, बोह के एके गघरी म।।

जननी ले बड़े मोर जग महतारी,
जान लड़ाके जेकर करवं रखवारी,
जब विपदा आवे ठाड़े राहवं दुवारी,
जोइधा खोजत रेंगय धरती, अहिंसा के पैडगरी म।


भाई ह भाई ल झन जाहर पियाव,
नता रिस्ता के अपन करव हियाव,
पिरीत बन म बैर के बिरवा झन गड़ियाव,
मया बाटत रेंगय धरती, अहिंसा के पैडगरी म।

हाथ जोरे हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई,
संघरे सकलागे सुराजी बर दाई,
अइसन जाइधा ल कइसे भुलाई,
गौरव गावत रेंगय धरती, अहिंसा के पैडगरी म।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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