फागुन फगुनाई : छत्तीसगढ़ी गीत

मन झुमरे लागे संगी मोर, परसाही अमराई म।
मऊहा म लगे कोवा के फर, फागुन फगुनाई म।।

रूख राई नवा रूप धरे, सुखाय डारा पाना ल झराय।
कोंवर पीका फोकियाय परे, ठुढ़गा के दिन बहुराय।
कर ले मनभर के सिंगार, मांग महिना बिदाई म।।

सेमर डूमर फुलय रे, फुलत हे परसा के फुल।
आरो मिलय होरी के, टासा नंगारा रूमझुम।
उमियाए लगे गांव बस्ती भर, भांग मदराई म।।

रंग खेलत डंडा नाचे, राहस देखाय होले डांड़ म। 
जम के गाए फाग रे, कबीरा के सरा ररा दोहा म।
पोताय हाबे सबो कोनो हर, रंग के रंगाई म।

मीत छुटे झन कभु रे, जुरे राहय प्रित के नता।
जर जए होरी रिस बैर के, छाहित राहय सुनता।
हॉसत राहे जीव उमर भर, झपाय झन रोवाई म।।

नाती बुड़वा के तिहार ये, तभे तो पिचकारी म रमे।
संगी जंहुरिया म करार हे, तभे तो गुलाल म जमे।
माते हे होरी भितरे भितर, ननंद भउजाई म।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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