सावन म रेंगय बियासी के नांगर : छत्तीसगढ़ी कविता

सावन म रेंगय संगी बियासी के नांगर,
झउंरत हे पानी अउ लउकत के बादर।

घाम ह जनावे नही नइतो जनावे धुका हर।
कुरे-कुर नंगरिहा के पांते पात निदइया बर।
नइतो अतरे बुता कतको बिपत पारे जांगर।

सवनाही म रइही काम बुता के मनाही।
मनौती बर भोले नाथ के मंदिर म जाही।
भक्ति अउ सक्ति के चले बमबम हरहर।।

गांव गली म माते हे नंगत छिपिर छईया।
झड़ी पानी के मजा लेवत अवइया-जवइया।
दिन बुड़ती करमा ददरिया गुंजय घरोघर।।

कोनो चड़े गेड़ी कोनो खेले भवंरा बाटी।
रोटी पीठा के सोर म मुंह लागे पंछासी।
जोहय हरेली राखी पोरा तीजा तिहार।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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