सावन के सुर्रा म, सिरजालव कमरा खुमरी।
हरेली के ओढ़र म, पगुरालव ठेठरी खुरमी।।
झिमिर- झिमिर बरखा ह, अब तो हमर अंतस जुड़ाही।
खेती खार घर दुवार ल, अब तो हिरयर लुगरा सुहाही।
रदरदा के गिरत पानी ह, छलकाय तरिया अउ डबरी।
झर झर झर गीत गावत, मस्ती म झुमरय झुमरी।।
ओरछाा के धारी म, चड़हत हे मछरी कोतरी।
डबरा के दलदली म, केकरा खनत हे सगरी।
कमइया जुझे खेती म, धर के नांगर अउ कुदारी।
कमइलिन दते मांदा म, बोये बर खीरा अउ केकरी।।
मोहारी धरती ह, प्रकृति के नवां सिंगार ले।
ममहागे जिनगी ह, मन म लोटे गुलनार ह।।
रितुराज के अगवानी म, नयन बिछावत सोन पुतरी।
उमंंग के झुलना म, हिलोरा लय लीम पिपर बमरी।।
हरेली ल मान के, बहिनी ह राखी अगोरय।
पोरा के रोटी धरे, तीजा के लुगरा ल जोरय।
कुवरा दसराहा म, देवधामी दरस करय धरमी।
दिन देवारी कातिक म, अघ्घन अवतरे धनवंतरी।।
हरेली के ओढ़र म, पगुरालव ठेठरी खुरमी।।
झिमिर- झिमिर बरखा ह, अब तो हमर अंतस जुड़ाही।
खेती खार घर दुवार ल, अब तो हिरयर लुगरा सुहाही।
रदरदा के गिरत पानी ह, छलकाय तरिया अउ डबरी।
झर झर झर गीत गावत, मस्ती म झुमरय झुमरी।।
ओरछाा के धारी म, चड़हत हे मछरी कोतरी।
डबरा के दलदली म, केकरा खनत हे सगरी।
कमइया जुझे खेती म, धर के नांगर अउ कुदारी।
कमइलिन दते मांदा म, बोये बर खीरा अउ केकरी।।
मोहारी धरती ह, प्रकृति के नवां सिंगार ले।
ममहागे जिनगी ह, मन म लोटे गुलनार ह।।
रितुराज के अगवानी म, नयन बिछावत सोन पुतरी।
उमंंग के झुलना म, हिलोरा लय लीम पिपर बमरी।।
हरेली ल मान के, बहिनी ह राखी अगोरय।
पोरा के रोटी धरे, तीजा के लुगरा ल जोरय।
कुवरा दसराहा म, देवधामी दरस करय धरमी।
दिन देवारी कातिक म, अघ्घन अवतरे धनवंतरी।।
- जयंत साहूडूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015
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मया आसिस के अगोरा... । जोहार पहुना।