भादो के महीना : छत्तीसगढ़ी कविता

गजब भागमानी हे बहिनी, भादो के महीना।
मइके म जुरियाही, डोकरी नेवरनिन कइना।।

खुसयाली बर मनाथे, गांव गांव म पोरा परब।
दुज के करू भात खाके, तिज म राखे बरत।।
मइके के सुख बर, निर्जला उपास हे रहिना।
गजब भागमानी हे बहिनी, भादो के महीना।

नंदीया बइला निकाल के, देव धामी म घुमाय।
पोरा चुकिया बिसा के, नान्हे लइका ल धराय।।
खेल खेल म सीखे नोनी, घर संसार म रहिना।
गजब भागमानी हे बहिनी, भादो के महीना।

हरहिन्छा के चार दिन, ससुरार के नइहे संसो।
लुगरा पोल्खा साया, रूंग रूंग के लेवा ले सबो।।
फरहार म पाबे सरी खुसी, महतारी के कहिना।
गजब भागमानी हे बहिनी, भादो के महीना।

ननपन के दिन लहुटे, ठट्ठा दिल्लगी म पोहाय बेरा।
जनम डेहरी छोड़के, चल देथे नोनी धरम के डेरा।।
नता ले नता नइ छुटे, आते जाते हे रहिना।
गजब भागमानी हे बहिनी, भादो के महीना।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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