जयंत साहू के छत्तीसगढ़ी कविता : माटी के कुरिया
सुख नइ पायेवं दू घड़ी,
दुमंजला महल भीतर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन ?
माटी के कुरिया अउ खदर म।।
थिरा लवं का दाई थोकुन ?
माटी के कुरिया अउ खदर म।।
जाड़ म कपासी मरथवं,
घाम म पछनाय परथवं।
भिंसरहा के भटकत सझौती आवं,
रतिहा चंदौनी के अंजोरी नइ पावं।
कोन जनी कब का हो जही ?
निंद गवायेवं इही डर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।01
घाम म पछनाय परथवं।
भिंसरहा के भटकत सझौती आवं,
रतिहा चंदौनी के अंजोरी नइ पावं।
कोन जनी कब का हो जही ?
निंद गवायेवं इही डर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।01
तेलई म घर के लासा डबकगे,
रंग के पोतई म तिजौरी खसकगे।
सीड़िया चड़ई म सियनहा बरसगे,
गरवा परसार म मेछराए ल तरसगे।
काकर बुध म गांव छोड़ी ?
लघियात आ बसेवं सहर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।02
रंग के पोतई म तिजौरी खसकगे।
सीड़िया चड़ई म सियनहा बरसगे,
गरवा परसार म मेछराए ल तरसगे।
काकर बुध म गांव छोड़ी ?
लघियात आ बसेवं सहर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।02
नहाय के खोली खाय के खोली।
बखत परे म बाहिर बट्टा होली।
अंगना में खोजवं तुलसी के बिरवा,
चौरा ओसही म पिपर के पेड़वा।
कइसे के बिसरजवं सुरता ?
खड़े ईटा पथरा के अधर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।03
संझा बिहनियां ल बिजली बनाही,
पंखा बगराही पवन कस पुरवाही।
अमरइया के हावा मुंदा जाही का,
एक दिन चंदा सुरूज लुका जाही का।
लहुट आते का बिते बेरा ?
लुकालेतेवं सुरता ल नजर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।04
अमरइया के हावा मुंदा जाही का,
एक दिन चंदा सुरूज लुका जाही का।
लहुट आते का बिते बेरा ?
लुकालेतेवं सुरता ल नजर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।04
मम्मी डैडी म दाई ददा ल भोरहा होथे,
टी.बी. रेडियो के सेती गीता रमायन रोथे।
पठेरा आंट मचान के खटिया उसलगे,
सोकेस अउ सोफासेट मार्बल म फिसलगे।
अब जी ले डरबे का जमाना ?
हफरगेवं ये डमराहा डगर म।
थिरा लवं का दाई थोकुन,
माटी के कुरिया अउ खदर म।।05
- जयंत साहूपता-: डूण्डा वार्ड नंबर 52 रायपुर छत्तीसगढ़ 492015Mobile-: 9826753304Email-: jayantsahu9@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
मया आसिस के अगोरा... । जोहार पहुना।