सियानी पै : छत्तीसगढ़ी कविता

नाहना बिगर बुलक जथे जुड़ा,
टेकनी बिगर उलर जथे धुरा,
बंधना बिगर बोचक जथे मुड़ा,
जतनी बिगर बिगड़ जथे टूरा।

मेछरावत पड़वा म मुरक्का मार,
हरहा गरवा म गरलगी डार,
थरहा बचाना हे त गोहड़ी बिदार,
बेहरवा टूरा ल तुरते सुधार।

अदरा ल सिखे पढ़े के संगत धरा दे,
निसंसो होके सगा घर लउठी मड़ा दे,
बाढ़हे-खोचे उमर हे त मड़वा गड़ा दे,
खुटा अरझा के टूरा के चेत चड़ा दे।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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