अंगार बोहे धरती : छत्तीसगढ़ी गीत

अंगार बोहे धरती, अगिन बरसात पुरवाही।
तन होगे गोरसी, तिपइया लोरघत लुकाही।।

लू लगे के डर म, गोंदली बांधेवं गर म।
पनही बिना पांव म, भोंभरा जरेवं गांव म।
पानी पसीया के खंगता म, बिचारी गघरी सुखही।।
अंगार बोहे धरती, अगिन बरसात पुरवाही।
तन होगे गोरसी, तिपइया लोरघत लुकाही।।


कमई धमई उसरे नही, पथरा होगे माटी।
खंती के ढेला उपजे नही, पछीना पिये खेती।
मया छांव संग राहे नही, बईरी घाम सताही।।
अंगार बोहे धरती, अगिन बरसात पुरवाही।
तन होगे गोरसी, तिपइया लोरघत लुकाही।।


सितलंग लागे घेरी-बेरी नहडोरी, तरिया घठौंदा नइ छुटे।
अतलंग पेट अमटाहा म जुडा़ही, सोरियात दही मही पुछे।
हरियर चारा होगे नोहराही, चेच अम्मारी सुहाही।।
अंगार बोहे धरती, अगिन बरसात पुरवाही।
तन होगे गोरसी, तिपइया लोरघत लुकाही।।

-  जयंत साहू
डूण्डा- रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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