संदेसिया : छत्तीसगढ़ी गीत

संदेस धरे सुवना आगे हे तोर छानी।
पहुना अवइया हे लोटा म देदे पानी।।

रोई-रोईर् के काजर धोवथे सजनी,
परदेस ले आ जबे सईया।
झांक-झांक के मुहाटी ले उड़थे ओड़नी,
तन मन ल छुवथे पुरवईया।।
दीदी के आस बाड़गे ,
भउजी के सांस माड़गे।
सुन डरिस संदेसिया सुवना के बानी।
पहुना अवइया हे लोटा म देदे पानी।।

तोर कोरे गांथे बांधे चुंदी उझरगे,
रही-रही के बेनी ल अईठे।
घेरी बेरी रचई म लाली बगरगे,
कलेचुप नई ये सम्हर के बईठे।।
सिंगार म अउ खंगे हे,
दरपन म दोस लगे हे।
देख डरिस अटरिया ले आवत नोनी।
पहुना अवइया हे लोटा म देदे पानी।।

सुरता म तोर संग बन डोगरी गएवं,
डारा पाना मन हर साखी हेबे।
तोर सुरता के मारे कातिक नहाएवं,
पहाती के सुकवा झन दगा देबे।।
आगे मन के मित,
गाबो पिरीत के गीत।
बाहा म भर ले चाहे हो जए नदानी।
पहुना अवइया हे लोटा म देदे पानी।।

सरकी पिड़हा दसा के आसन बनाएवं,
भोजन बनाएवं तोर मन के।
आवत खानी गहना गुठा लेवत आतेव,
निकलतेवं गली म बन ठन के।।
नाक बर नथनिया,
पांव बर पैजनीया।
लान लेहा राजा बाट जोहथे रानी।
पहुना अवइया हे लोटा म देदे पानी।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

1 टिप्पणी:

  1. गजब मस्त नुनछुर लागिस कविता ह। मया पिरित के बानी मं सुग्घर गोठ।

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मया आसिस के अगोरा... । जोहार पहुना।

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