लूक बरसावत आगे, झांझ झोला के मंझनियां।
पानी अटाही, आगी बरसही,
जीव जूड़ छावं बर तरसही,
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
बाहिर निकलने नई भाए, घर म ओईले नई जाए,
लटपट म बेरा ह कटाए,
अब तो तन होवथे राख, कतको राखव जतनिया।
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
ठुढ़गा दिखे पेड़वा, दुच्छा होगे भड़वा,
सूकखा हे नंदिया नरवा,
पनिहारिन घठौंदा राख, पानी पी जही मछरीया।
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
चाहके नही चिरईया, घुनखाय बईठे बिलईया,
उबुक चुबुक करे अमरईया,
निंद ल पहाती बर राख, सरी रात मारे छैलनिया।
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
पानी अटाही, आगी बरसही,
जीव जूड़ छावं बर तरसही,
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
बाहिर निकलने नई भाए, घर म ओईले नई जाए,
लटपट म बेरा ह कटाए,
अब तो तन होवथे राख, कतको राखव जतनिया।
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
ठुढ़गा दिखे पेड़वा, दुच्छा होगे भड़वा,
सूकखा हे नंदिया नरवा,
पनिहारिन घठौंदा राख, पानी पी जही मछरीया।
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
चाहके नही चिरईया, घुनखाय बईठे बिलईया,
उबुक चुबुक करे अमरईया,
निंद ल पहाती बर राख, सरी रात मारे छैलनिया।
अंगरा बरत जेठ बईसाख, संझा लागे न बिहनीया।।
- जयंत साहूडूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015
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मया आसिस के अगोरा... । जोहार पहुना।