करम के दोना : छत्तीसगढ़ी कविता

किंजर के गली-गली म,
मै करम के दोना तुनथवं।
जिनगा बगरगे जाने कोन गरेरा म,
अब सुख के डारा पाना बिनथवं।।

नइ चाही धन दउलत, नइ मांगत हवं कपड़ा लत्ता।
भुख बाड़गे लइका के नंगत, पसिया पेज देवादे दाता।
कइसे गढ़हे हस भग ल, मै अभागा के ताना सुनथवं।।


काबर आखी मुंदे बइठे हस, ये पथरा के भगवान।
मोला हे रोटी के आस, तोला भोग लगे खीर पकवान।
हाथ पसारे ठाड़हे, मै परसाद म घला हिनावथं।।


कोन जनम के पाप रिहीस, काकर करजा छुटथवं।
कतका भुगतना लिखेहस, यम ल आज पुछथवं।
दया करव दयालू, मै आठो पाहर तोर नाम गुनथवं।।

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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