लुवे ला जावथे धान : छत्तीसगढ़ी गीत

लुवे ला जावथे धान, दाई धरके धरहा हसिया।
बियारी के बेरा आगे, भउजी बोहके पेज पसिया।
लइका बुड़वा सिला सिलहोवे, ददा हे बिड़ा बंधइया।।

भोर के लाली ले बुड़ती बेरा हर आगे,
दवई पानी नही पसीना म धान ह जागे।
नांगर के बइला भइसा दउरी म फंदागे,
बेलन के बछवा पैर ल खुरखुंद मतागे।
गाड़ा-गाड़ा पावथे धान, बबा हे कोठी धरे धरइया।

जतन बर पेड़वा के आठो पाहर खेत राखे हे,
अंगरी भर बीजा के मुठा भर कंसा फांके हे।
माटी ल महतारी अउ खेती ल संगवारी माने हे,
कीरा ल बईरी अउ करगा ल दुसमन जाने हे।
जग ल जिनगी देवथे धान, बाप पुरखा के हम कमइया।

तिवरा चना गहु अउ तिली सरसो के उतेरा,
नरई म चूनचूनिया, नरवा म मछरी के बसेरा।
मेड़पार म फुटू फुटे, पेरावट म छुछू के उकेरा
बखत म कमालव, फुरसद म खाहू बइठके होरा
सुख के दिन देवाथे धान, 'अपजस' म गुनगान करइया। 

-  जयंत साहू
डूण्डा - रायपुर छत्तीसगढ़ 492015

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